सन्त कहते हैं “न अभाव में रहो, न प्रभाव में रहो बल्कि स्वभाव में रहो”. अभाव मानव का सहज स्वभाव नहीं है क्योंकि वह वास्तव में पूर्ण है. अपूर्णता ऊपर से ओढ़ी गयी है, और चाहे कितनी ही इच्छा पूर्ति क्यों न हो जाये यह मिटने वाली नहीं. हम मुक्त होना चाहते हैं जबकि मुक्त तो हम हैं ही, बंधन खुद के बनाये हुए हैं, ये प्रतीत भर होते हैं. प्रेम हमारा सहज स्वभाव है, हम उसी से बने हैं. अज्ञान वश जब हम इस सत्य को भूल जाते हैं तथा प्रेम को स्वार्थ सम्बन्धों में ढूंढने का प्रयास करते हैं तो दुःख को प्राप्त होते हैं. हमें अपने जीवन के प्रति जागना है. कुछ बनने की दौड़ में जो द्वंद्व भीतर खड़े कर लेते हैं उसके प्रति जागना है. मन को जो अकड़ जकड़ लेती है, असजगता की निशानी है. खाली मन जागरण की खबर देता है , क्योंकि मन का स्वभाव ही ऐसा है कि इसे किसी भी वस्तु से भरा नहीं जा सकता इसमें नीचे पेंदा ही नहीं है, तो क्यों न इसे खाली ही रहने दिया जाये. मुक्ति का अहसास उसी दिन होता है जब सबसे आगे बढ़ने की वासना से मुक्ति मिल जाती है.
उपयोगी और सुन्दर सन्देश।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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