गुरु पूर्णिमा प्रत्येक साधक के लिए एक विशेष दिन है. अतीत में जितने भी गुरू हुए, जो वर्तमान में हैं और जो भविष्य में होंगे, उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन ! माता शिशु की पहली गुरू होती है. जीविका अर्जन हेतु शिक्षा प्राप्त करने तक शिक्षक गण उसके गुरु होते हैं, लेकिन जगत में किस प्रकार दुखों से मुक्त हुआ जा सकता है, जीवन को उन्नत कैसे बनाया जा सकता है, इन प्रश्नों का हल गुरुजन ही दे सकते हैं. इस निरंतर बदलते हुए संसार में किसका आश्रय लेकर मनुष्य अपने भीतर स्थिरता का अनुभव कर सकता है ? जगत का आधार क्या है ? इस जगत में मानव की भूमिका क्या है ? उसे शोक और मोह से कैसे बचना है ? इन सब सवालों का जवाब भी गुरू का सत्संग ही देता है. जिनके जीवन में गुरू का ज्ञान फलीभूत हुआ है वे जिस संतोष और सुख का अनुभव सहज ही करते हैं वैसा संतोष जगत की किसी परिस्थिति या वस्तु से प्राप्त नहीं किया जा सकता. गुरू के प्रति श्रद्धा ही वह पात्रता प्रदान करती है कि साधक उनके ज्ञान के अधिकारी बनें.
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (7 -7 -2020 ) को "गुरुवर का सम्मान"(चर्चा अंक 3755) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
Deleteगुरू पूर्णिमा पर रची गई सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteगुरुओं को समर्पित रचना
ReplyDeleteवाह
स्वागत व आभार !
Deleteसमस्त गुरुसत्ता को नमन
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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ReplyDeleteगुरुदेव के प्रति कृतज्ञ भाव !
ReplyDeleteतुम कृपासिन्धु विशाल , गुरुवर !
मैं अज्ञानी , मूढ़ , वाचाल गुरूवर !
पाकर आत्मज्ञान बिसराया .
छल गयी मुझको जग की माया ;
मिथ्यासक्ति में डूब -डूब हुआ
अंतर्मन बेहाल , गुरुवर !!
हार्दिक शुभकामनाएं और आभार अनीता जी |