हमारे जीवन में कुछ बातें बार-बार होती हैं, जिन बातों से हम बचना चाहते हैं वे ही नया-नया रूप लेकर आती हैं. यहाँ तक कि कभी-कभी हम स्वयं ही चौंक जाते हैं, ये वार्तालाप तो ऐसा का ऐसा पहले भी हुआ है. हमने सामने वाले की बात पर जिस तरह पहले प्रतिक्रिया की थी वैसी ही फिर करते हैं. जिस आदत को छोड़ने का मन बना लिया था वह पुनः पकड़ लेती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारी पहुँच अचेतन मन तक नहीं है, चेतन मन से हम कोई प्रण लेते हैं पर उसकी खबर भीतर वाले मन को होती ही नहीं, वह तो अपने पुराने कार्यक्रम के अनुसार ही चलता रहता है. जीवन गोल-गोल एक चक्र में घूमता रहता है. यदि इस चक्र को तोड़ना है तो ध्यान ही सरल उपाय है. ध्यान में ही पुराने संस्कारों का दर्शन होता है और उनसे छुटकारा पाया जा सकता है. भगवान बुद्ध ने विपासना ध्यान की सरल विधि दी जिसमें स्वतः चलने वाली श्वासों के प्रति साधक को सजग रहना है.
स्वागत व आभार !
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