निशब्द परमात्मा तक पहुंचने के लिए शब्दों की एक नाव बनानी पडती है, पर अंततः शब्द भी छूट जाते हैं क्योंकि वह शब्दातीत है. मंत्र इसी नाव का नाम है. हमारे मन में असीम सामर्थ्य है जो हम चाहें उसे वह अनुभूत करा सकता है. मन की वृत्ति या विचार में यदि ईश्वर का नाम हो, तो वही प्रगट होगा. यह जप सतत बना रहे तो इष्ट हमारे मन का स्वामी बन जाता है, उसी का अधिकार हृदय पर हो जाता है और इसके बाद समता स्वयं ही प्राप्त हो जाती है. यदि बाहर कोई भी विपरीत परिस्थिति आती है और मन विचलित होता है तो मन्त्र का स्मरण तुरन्त सहज अवस्था में पहुँचा देता है. मन में जो नकारात्मक विचार आयें उन्हें ठहरने न देना और जो सकारात्मक विचार आयें उन पर ही ध्यान केंद्रित करना साधक के लिये सहज हो जाता है.
उपयोगी सन्देश।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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