बुद्ध ने कहा है, जीवन में दुःख है. इस दुःख का कारण है. कारण का निवारण है. वह पथ है जिस पर चलकर एक दुखविहीन अवस्था का अनुभव किया जा सकता है. जीवन में जन्म, मरण, बुढ़ापा, मृत्यु, ये चार दुःख हरेक को भोगने पड़ते हैं. उदासी, क्रोध, ईर्ष्या, चिंता, भय, अवसाद सभी दुःख हैं. प्रियजनों से विछोह दुःख है, अप्रिय से मिलन दुःख है. इच्छा, आसक्ति, देह, मन, बुद्धि आदि से चिपकाव दुःख है. अज्ञान ही इन दुखों का कारण है. जीवन के मर्म को न समझकर हम इन दुखों से ग्रस्त होते हैं. इन दुखों से बचा जा सकता है. जीवन के सत्य को समझकर ही कोई दुःख से मुक्त हो सकता है. बुद्ध ने एक मार्ग भी दिया जिस पर चल कर एक ऐसी अवस्था भी आती है जहाँ कोई दुःख नहीं है. इस पथ का राही सजग होकर सदा वर्तमान में रहता है. सजगतापूर्वक जीने का मार्ग ही अष्टांगिक मार्ग है. सम्यक समझ, सम्यक विचार, सम्यक वाणी, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक प्रयत्न, सम्यक ध्यान, सम्यक एकाग्रता जिसके अंग हैं.
स्वागत व आभार !
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