जब हम उसे ढूँढते हैं तो वह हमें नहीं मिलता. पर जब उसे ढूँढते-ढूँढते खो जाते हैं तो वह हमें ढूँढता है. परमात्मा के मार्ग की रीत बिल्कुल उलटी है यहाँ मिलता उसी को है जो छोड़ने को तैयार हो. हमें तो बस उसे याद करते जाना है. हमारी हर श्वास पर उसका अधिकार है, क्योंकि हमारा अस्तित्त्व ही उसपर टिका है. हमारे पास अभिमान करने जैसा कुछ है तो यही कि हमने मानव जन्म पाया है और सत्संग के द्वारा सत्य के प्रति आस्था मन में जगी है. अब इस आस्था को पोषित करना है या छोटी-छोटी बातों में उड़ा देना है इसका निर्णय हमें करना है. इस काल को सार्थक करना या इसे व्यर्थ बिता देना हमारे अपने हाथ में है.
सार्थक सन्देश
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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