Thursday, July 9, 2020

सत्व गुण जब बढ़ेगा मन में


पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियाँ और मन ये सब मिलकर ग्यारह इन्द्रियां हैं. श्रवण करते समय कान, शब्द तथा मन ये तीन उपस्थित होते हैं, इसी प्रकार प्रत्येक इन्द्रिय के द्वारा विषय अनुभव करते समय विषय, मन और इन्द्रिय तीन की उपस्थिति रहती है.  शब्द का आधार कान है और कान का आधार आकाश है; अतः वह आकाशरूप ही है. इसी प्रकार त्वचा, जिह्वा, नेत्र और नासिका भी क्रमशः स्पर्श, स्वाद, रूप और गंध का आश्रय तथा अपने आधार पवन, अग्नि, पृथ्वी और जल के स्वरूप हैं. इन सबका अधिष्ठान है मन. इसलिए सबके सब मन स्वरूप हैं. इनमें मन कर्ता है, विषय कर्म है और इन्द्रिय करण है. ये कर्ता, कर्म और करण रूपी तीन प्रकार के भाव बारी-बारी से उपस्थित होते हैं. इनमें से एक-एक के सात्विक, राजस और तामस तीन-तीन भेद होते हैं. अनुभव भी तीन प्रकार के ही हैं. हर्ष, प्रीति, आनंद, सुख और चित्त की शांति का होना सात्विक गुण का लक्षण है. असन्तोष, सन्ताप, शोक, लोभ तथा अमर्ष -ये किसी कारण से हों या अकारण, रजोगुण के चिह्न हैं. अविवेक, मोह, प्रमाद, स्वप्न और आलस्य -ये किसी भी तरह क्यों न हों, तमोगुण के ही नाना रूप हैं. प्रत्येक साधना का लक्ष्य सत्वगुण को बढ़ाते जाना है और रजोगुण व तमोगुण को कम करना है. 

1 comment: