जीवन एक पाठशाला ही तो है, यहाँ हर दिन, हर किसी को, कोई न कोई परीक्षा देनी होती है. जब कोई देख न रहा हो तब भी कोई देखता है कि जब करुणा दिखाने का वक्त था तो हम कितने उदार थे. अचानक कोई विपदा आ पड़ी तो हमने कितनी शीघ्रता से उसका समाधान ढूंढ लिया. सामने वाला हमसे सहमत न हो रहा हो तो झट उसके दृष्टिकोण से हम वस्तुओं को भांप सकते हैं या नहीं इसकी भी परख होती है. जब देह को कोई रोग सताये तो हम कितनी जल्दी साक्षी भाव में आकर स्वयं को दर्द से बचा ले जाते हैं. जीवन में आ रहे परिवर्तन को कितनी आसानी से हम स्वीकार कर लेते हैं और दृढ़ता से उसका सामना करते हैं. कुछ भी हो जाये हमारी आशा की डोर टूटी तो नहीं, इसकी भी परीक्षा होती है. परमात्मा के प्रति आस्था और श्रद्धा में रंच मात्र भी कमी तो नहीं आती, कृतज्ञता की भावना ने हमारे अंतर को आप्लावित तो कर दिया है न. असीम धैर्य और आत्मविश्वास की पूंजी घट तो नहीं रही. जैसा जीवन हम चाहते हैं उसी के अनुरूप हमारे कर्म भी हो रहे हैं या नहीं. ये सभी छोटी-छोटी बातें यदि जीवन में हैं तो अवश्य ही हम जीवन की पाठशाला से सफल होकर जाने वाले हैं.
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