ईश्वर को सत्य, शिव और सुंदर नाम दिए गए हैं, इसका अर्थ हुआ जो सत्य है वही कल्याणकारी है और वही सुंदर है. व्यवहारिक जीवन में भी हम इन तीनों तत्वों के महत्व और उपयोगिता को नित्यप्रति अनुभव करते हैं. असत्यभाषी पर कोई विश्वास नहीं करता, जो अपनी बात पर कायम नहीं रहता ऐसे व्यक्ति को जीवन में असफलता ही हाथ लगती है. सौंदर्य के प्रति हर मानव के भीतर सहज ही आकर्षण होता है. सुंदरता किसे नहीं भाती। शिशु के मुखड़े पर छायी मुस्कान उसकी आंतरिक सुंदरता को दर्शाती है, धीरे-धीरे रोष, लालसा, दुःख आदि के भाव भी चेहरे पर झलकने लगते हैं और एक वयस्क व्यक्ति का चेहरा वैसा सहज और सुंदर नहीं रह जाता. संतों के चेहरे पर वृद्धावस्था में भी एक अलौकिक सौंदर्य दिखाई देता है. नन्हा बालक सत्य में स्थित होता है, अभी उसे असत्य का बोध ही नहीं. सन्त सदा जगत के कल्याण की बात करते हैं, इसीलिए दोनों में सौंदर्य के दर्शन होते हैं।
स्वागत व आभार !
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