Wednesday, August 1, 2012

बन जाये वह मीत हमारा


जून २००३ 
वर्षा होती है तो सब ओर शीतलता छा जाती है और ग्रीष्म का ताप कहीं दूर चला जाता है.ऐसे ही जब हृदय में प्रभु प्रेम के बादल छा जाते हैं और भक्ति रूपी वर्षा होने लगती है, प्यास से तृषित मानस धरा पर जब बूंदें बरसती हैं, तो तीनों तापों से मुक्ति मिल जाती है. मन सौम्यभाव में स्थित हो जाता है, सुख-दुःख रूपी पक्षी भी शांत हो जाते हैं. यह जगत एक अनवरत चलने वाली चक्की की तरह है, रात और दिन जिसके दो पाट हैं. हम सभी एक न एक दिन इसमें पिस जाने वाले हैं, कुछ रहस्य ऐसे हैं, जिन पर पड़ा पर्दा ईश्वर उठाना नहीं चाहते, लेकिन वह इतनी कृपा अवश्य करते हैं कि उनका सान्निध्य एक ऐसा भाव जगाता है जिसके सम्मुख मृत्यु भी नहीं टिक पाती, तब जीवन और मरण दोनों एक से प्रतीत होते हैं, अभय प्रदान करती है भक्ति, तब इस देह से उतने ही कार्य मन लेता है जो आवश्यक हों, तब हृदय अनंत का घर बन जाता है, जब प्रेम के अतिरिक्त कोई भावना हमारे किसी कार्य, विचार या शब्द के पीछे नहीं होती, तब परमात्मा हमारा मीत बन जाता है.   

5 comments:

  1. जब प्रेम के अतिरिक्त कोई भावना हमारे किसी कार्य, विचार या शब्द के पीछे नहीं होती, तब परमात्मा हमारा मीत बन जाता है.

    सुन्दर भाव

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  2. जब प्रेम के अतिरिक्त कोई भावना नहीं होती, तब परमात्मा हमारा मीत बन जाता है.,,,,

    रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,

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  3. यह जगत एक अनवरत चलने वाली चक्की की तरह है, रात और दिन जिसके दो पाट हैं.....सर्वथा सत्य
    बहुत ही सुन्दर भाव

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  4. अनुपमा जी, धीरेन्द्र जी, अंजनी जी, व रमाकांत जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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