Friday, September 13, 2013

सुख का सागर भीतर बहता


हम सभी के भीतर सद्वासना, असद्वासना तथा मिश्रित वासना है. सद्वासना सभी का कल्याण करती है, असद्वासना सदा दुःख को जन्म देती है, मिश्रित वासना कभी सुख कभी दुःख का कारण होती है. इस संसार में वही स्वस्थ हैं, यानि स्व में स्थित हैं जिन्हें किसी भी प्रकार की वासना नहीं सताती है, जिनके सारे आरम्भ नष्ट हो गये हैं, सहज प्राप्त कर्मों को जो करते हैं, और ऐसे कर्म उन्हें बांधते नहीं हैं. इच्छा न होने से मन में संकल्प-विकल्प भी नहीं उठते, तभी वे आत्मा में स्थित रहते हैं, आत्मा का सदा एक सा सुख भीतर से मिलता रहता है, वह सुख जो सीधे ईश्वर से आता है, उसका कोई और कारण नहीं है, जगत का सुख किसी कारण से ही होगा और जितना सुख होगा उतना ही दुःख भी उसके साथ जुड़ा होगा. आत्मा का सुख शुद्द है, अनंत है, प्रेम से परिपूर्ण है, उसमें जोई छिपाव नहीं है, वह इस जगत के दांवपेंच से परे है, वह  अछूता है, वह सात्विक है. 

4 comments:

  1. परमानंद यही है। परमात्मा का एक नाम आत्मानंद भी है।

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  2. विल्कुल सही बाते हैं।

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  3. अगरे ब्लोगिया के सवाल ज़वाबन का इंतज़ार हैवे।

    मुबारक हिंदी दिवस


    पहर वसन अंगरेजिया ,हिंदी करे विलाप ,

    अब अंग्रेजी सिमरनी जपिए प्रभुजी आप।

    पहर वसन अंगरेजिया उछले हिंदी गात ,

    नांच बलिए नांच ,देदे सबकू मात।

    अब अंग्रेजी हो गया हिंदी का सब गात ,

    अपनी हद कू भूलता देखो मानुस जात।

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  4. राजेन्द्र जी व वीरू भाई, स्वागत व आभार !

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