सितम्बर २००६
कृष्ण
व्यापक है, परम सत्य व्यापक है किन्तु हम मद तथा मूढ़ता की कारण उसे देख नहीं पाते.
सत्य में स्थित रहकर कोई स्वयं को भूल नहीं सकता. हर हाल में जो शांत है, भीतर की
समता बनाये रखता है, वह भक्त कृष्ण का प्रिय है. कृष्ण तथा सद्गुरु हमारे मद को
दूर करने के लिए कभी-कभी कठोर हो जाते हैं. जब हम सत्य की खोज में निकलते हैं तो
मन भटकाता है, हम केंद्र से दूर हो जाते हैं. सत्य शास्त्र से नहीं मिलता, शास्त्र
उसका अनुमोदन भर करते हैं. हम जहाँ हैं वहीं थमकर देखने से मिलता है. सत्य जब
प्रकट होता है तो ही भीतर का प्रेम प्रकट होता है, उसी प्रेम के कारण भक्त कभी
गाता है, अश्रु बहाता है, नृत्य करता है.
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