सितम्बर २००६
भक्त
परमात्मा की कृपा को हर क्षण अनुभव करता है. गुरू के वचन उसके लिए अमृत के समान
होते हैं जो भीतर की सारी पीड़ा को धो डालते हैं. वह सद् मार्ग पर चलने के लिए
प्रेरित करते हैं. उनकी दी हुई शक्ति से भर कर वह भविष्य के प्रति आशावान रहता है
और वर्तमान के प्रति सजग. भक्त कभी उसे याद न भी करे तो वह स्वयं अपनी याद दिलाता
है. कभी-कभी जो भक्त के भीतर आनन्द के फूल बेवजह ही खिलने लगते हैं, गीत स्वतः
झरने लगते हैं तो उसी ने किसी रूप में पुकारा होता है. उसकी महिमा के गीत यूँही ही
तो नहीं गाए गये. वह क्या है यह तो शायद वह स्वयं भी नहीं जानता.
" ज्ञानमूलम् गुरोर्मूर्तिः पूजा मूलम् गुरोर्पदम् ।
ReplyDeleteमन्त्र मूलम् गुरोर्वाक्यं मोक्ष मूलम् गुरोर्कृपा ॥"
सत्य वचन शकुंतला जी
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