Saturday, July 19, 2014

जाना है उस पार

अक्तूबर २००६ 
यह जगत तथा यह शरीर दोनों समानधर्मी हैं, परिवर्तनशील तथा सुख-दुःख के कारण, किन्तु आत्मा, परमात्मा का अंश है सो सदा अछूता है. मन इन दोनों के मध्य का पुल है, हम इस पुल पर खड़े हैं, चाहें तो भीतर के उतरें चाहे तो जगत की ओर मुड़ें जहाँ छलावा ही छलावा है, मन के इस पुल पर खड़े हमें कितने ही जन्म बीत गये हैं, हम कभी इधर का तो कभी उधर का रुख लेते हैं फिर दोनों से घबरा कर बीच में आ जाते हैं, न तो पूरी तरह से संसार के हो पाते हैं न ही पूर्ण रूप से आत्मा को जान पाते हैं. सारी साधना उस डुबकी के लिए है जो आत्मा के सागर में लगानी है.  


3 comments:

  1. सच कहा ... सारी साधना उस डुबकी के लिए है

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  2. जिसे हम खोज रहे हैं वह हम ही हैं आई ऍम लिमिटलैस /जिसे हम खोज रहे हैं वह हम ही हैं आई ऍम लिमिटलैस दिस कॉलिज आफ सेल्फ इस लिब्रेशन

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  3. सदा जी व वीरू भाई, स्वागत व आभार !

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