अगस्त २००६
किसी
कवि ने ठीक कहा है –
अधिकांश आकाश छूट जाता
है
थोड़ी सी भूमि गुनगुनाता
हूँ
हम उस आत्मा को जो आकाश
की भांति व्यापक है , कैद करना चाहते हैं पर वह पकड़ में नहीं आती. मन, बुद्धि से
परे वह आत्मा सदा हमसे दूर ही रहती है, फिर हम हार कर मन, बुद्धि का आश्रय छोड़
देते हैं तो भीतर से कोई गीत गाने लगता है. संगीत फूटने लगता है. उस दुनिया में
कुछ भी थोड़ा सा नहीं सब कुछ अनंत है. अनंत चिदाकाश, अनंत आनंद, अनंत शांति, अनंत
प्रेम तथा अनंत ज्ञान भी ! जीवन का, कण-कण में बसी चेतना का ज्ञान ! तब छोटापन खत्म
हो जाता है, सारी सीमाएं छूट जाती हैं. हम उसे विराट के अंश हैं और उसका सब हमारा
है यह भाव दृढ हो जाता है. आत्मा का यह ज्ञान अद्भुत है, पर जब यह सहज रूप से
हमारे कर्मों, वाणी तथा व्यवहार से प्रकट होने लगे तभी टिका हुआ जाना जायेगा.
ज्ञान के सहज बोध की निरंतरता बनी रहनी चाहिए ....सत्य वचन ...!!
ReplyDeleteज्ञान पहुँचता है अनंत तक |
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