सितम्बर २००६
ज्ञान
से हम ज्ञात-ज्ञातव्य हो जाते हैं. योग से कृत-कृतव्य हो जाते हैं और भक्ति से
प्राप्त-प्राप्तव्य हो जाते हैं. तीन ही तो शक्तियां हैं हमारे पास, जानने की
शक्ति, करने की शक्ति तथा मानने की शक्ति. यदि जीवन में ज्ञान, भक्ति तथा योग नहीं
है तो हम कोल्हू के बैल की तरह एक ही घेरे में चक्कर लगाते हैं जिसकी आँखों पर पट्टी
बंधी है. कहीं भी नहीं पहुंचते, जीवन भर एक ही सीमा में बंधे रह जाते हैं. सद्गुरू
के द्वार पर पहुंचने भर की देर है, वह ज्ञान से हमारे भीतर के चक्षु खोल देते हैं,
भक्ति से हृदय को सरस बना देते हैं तथा सेवा की प्रेरणा देकर करने की क्षमता का
उपयोग करना सिखाते हैं.
हम अपनी अन्तर्निहित क्षमता से कितने अनजान हैं...बहुत गहन प्रस्तुति...
ReplyDeleteकैलाश जी, स्वागत व आभार !
ReplyDelete