Tuesday, July 29, 2014

पल पल उसकी याद रहे

जनवरी २००७ 
सन्त कहते हैं, सृष्टि और परमात्मा अलग-अलग नहीं हैं. परमात्मा हमारे भीतर उसी तरह समाया हुआ है जैसे फूल में खुशबू ! हमारे भीतर जब उसकी उपस्थिति महसूस होने लगती है तब ज्ञान केवल शब्दों तक सीमित नहीं रह जाता. साधक को प्रतीत होता है उसे अपने लिए अब कुछ पाना नहीं, कुछ करना नहीं, कुछ जानना नहीं. वह कृत-कृतव्य, ज्ञात-ज्ञातव्य, प्राप्त-प्राप्तव्य हो जाता है. हमारे जीवन का प्रत्येक क्षण जगत के लिए सुखकर हो, शुभ हो, वाणी सौम्य हो तथा कर्म बंधनकारी न हों, पूर्वजों को सुख देने वाले हों तथा प्रियजनों के लिए हितकारी हों, हमारी हर श्वास नाम से युक्त हो, पवित्र आत्मा में सदा हमारी स्थिति हो, ऐसी ही प्रार्थना जब फलित होती है तब परमात्मा की अनुभूति घटती है. 

4 comments:

  1. " दुख में सुमिरन सब करे सुख में करे न कोय ।
    जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे होय ॥ "
    कबीर

    ReplyDelete
  2. फिर भी इंसान खोज में रहता है परम सुख की यहाँ वहां ...

    ReplyDelete
  3. परमात्मा सर्वव्यापी है। उसकी खोज हमारी मूर्खता है।
    बहुत उम्दा अभिव्यक्ति।
    नई रचना : सूनी वादियाँ

    ReplyDelete
  4. शकुंतला जी, दिगम्बर जी व राहुल जी, आप सभी का स्वागत व आभार !

    ReplyDelete