Sunday, July 20, 2014

दर्पण सी हो शुद्ध चेतना

अक्तूबर २००६ 
जीवन का सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न चेतना का विकास ही है. पदार्थ भी हमारी चेतना को प्रभावित करते हैं. विकसित चेतना ही हमें आत्मा के पथ पर ले जाती है. आत्मा मन, बुद्धि तथा संस्कार के माध्यम से जगत को ग्रहण करती है. यदि हमें इस देह में रहते हुए आत्मा का अनुभव करना है तो बुद्धि को शुद्ध बनाना होगा. शुद्ध बुद्धि कामधेनु के समान है आत्मा का ज्ञान होने पर अशुभ संस्कार स्वयं ही नष्ट होने लगते हैं. वर्तमान में रहना, प्रतिक्रिया न करना, मैत्री भाव तथा मिताहार हमारी बुद्धि को शुद्ध करने के लिए आवश्यक हैं. साधना काल में मित भाषण भी आवश्यक है. शरीर व मन की अपेक्षा पूर्ण होती हो, इतना ही वाणी का प्रयोग हो तो ऊर्जा बचती है जो ध्यान में सहायक है.


2 comments:

  1. शरीर व मन की अपेक्षा पूर्ण होती हो, इतना ही वाणी का प्रयोग हो तो ऊर्जा बचती है जो ध्यान में सहायक है.

    सटीक अनीता जी....

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  2. स्वागत व आभार मुदिता जी !

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