सितम्बर २००६
साधक
के जीवन में सद्भाव का प्रमाण है निर्भयता, वीरभाव का प्रमाण है धैर्य, समभाव का
प्रमाण है निश्चिंतता, करुणा भाव का प्रमाण है अहिंसक होना, त्यागभाव का प्रमाण है
वैराग्य, इससे अनावश्यक अपने आप छूट जाता है, लुट जाना, लुटाते रहना ही तब स्वभाव
बन जाता है. प्रेम भाव में कामनाओं का नाश होता है. अहोभाव आने पर केवल आनन्द ही
शेष रहता है. अहोभाव में आने के लिए आवश्यक है कि हम क्षण-प्रतिक्षण कृतज्ञता का
अनुभव करें. हमें जीवन का इतना सुंदर उपहार मिला है, अस्तित्त्व ने इस पल हमें
चुना है, वह हमारे माध्यम से प्रकट हो रहा है. हम हैं, क्योंकि वह है, उसकी कृपा
की छाया में हम पलते आये हैं, इस बात का अनुभव होने पर ही अहोभाव घटता है.
सुन्दर सरणी जीवन के लिए पथप्रदर्शक यंत्र सी।
ReplyDeleteअद्भुत भाव । सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteवीरू भाई व शकुंतला जी, स्वागत व आभार !
ReplyDeleteअति सुंदर।
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