Tuesday, November 4, 2014

बन जाये मन अपना राधा

अप्रैल २००७ 
कृष्ण हमारी आत्मा है, मन की भीतर लौटती हुई धारा ही राधा है. जैसे-जैसे मन भीतर जाता है उसे आत्मा से प्रेम हो जाता है. उसे प्रेम रोग लग जाता है. “दिल हमको लुटा बैठा, हम दिल को लुटा बैठे, क्या रोग लगा बैठे...” जिसके रोम-रोम में प्रेम का रोग लगा है वह है भक्त. दोनों का मिलन ही विश्राम को प्रकट करता है. वास्तव में हमारा मन, बुद्धि समाधान चाहते हैं, जगत उसे समाधान दे नहीं सकता, परमात्मा ही दे सकता है, जो आत्मा रूप में हमारे भीतर है. संसार में उलझा हुआ मन अपने पद से नीचे गिर जाता है, शहजादे से भिखारी बन जाता है. वह जो आत्मा की तरंग है उसी की जाति का है उसी को भुलाकर विजातीय से प्रेम करने लगता है, पर खुद से मिलने की जब याद आती है तो भीतर मिलने की तड़प जगती है और मन भीतर लौटने लगता है.  

3 comments:

  1. आत्म से मिलन की राह ... कृष्ण से मिलन की राह ...
    सुन्दर ...

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  2. दिगम्बर जी व देवेन्द्र जी, स्वागत व आभार !

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