Monday, July 31, 2023

आनंद की जब चाह जगे

जीवन यात्रा में चलते हुए मानव के सम्मुख लक्ष्य यदि स्पष्ट हो और सार्थक हो तो यात्रा सुगम हो जाती है। योग के साधक के लिए मन की समता प्राप्त करना सबसे बड़ा लक्ष्य हो सकता है और भक्त के लिए परमात्मा के साथ अभिन्नता अनुभव करना. कर्मयोगी अपने कर्मों से समाज को उन्नत व सुखी देखना चाहता है. मन की समता बनी रहे तो भीतर का आनंद सहज ही प्रकट होता है. परमात्मा तो सुख का सागर है ही, और निष्काम कर्मों के द्वारा कर्मयोगी कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाता है, जिससे सुख का अनुभव होता है, अर्थात तीनों का अंतिम लक्ष्य तो एक ही है, वह है आनंद और शांति की प्राप्ति. सांसारिक व्यक्ति भी हर प्रयत्न सुख के लिए ही करते हैं, किन्तु दुःख से मुक्त नहीं हो पाते क्योंकि जगत का यह नियम है कि सुख-दुख यहाँ एक साथ मिलते हैं, अर्थात जो वस्तु आज सुख दे रही है, वही कल दुख देने वाली है। साधक, भक्त व कर्मयोगी तीनों को इस बात का ज्ञान हो जाता  है, तभी वह साधना के पथ पर कदम रखते हैं; और सदा के लिए दुखों से मुक्त हो जाते हैं। 


Tuesday, July 25, 2023

‘ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या’

आदिगुरु शंकराचार्य  उसी तरह कहते हैं, ‘ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या’. जैसे कोई कहे वस्त्र सत्य है उस पर पड़ी सिलवटें मिथ्या हैं, धागा सत्य है उस पर पड़ी गाँठ मिथ्या है अथवा तो सागर सत्य है, उसमें उठने वाली लहरें, झाग व बूंदें मिथ्या हैं। सिलवटें, गाठें, लहरें और बूंदें पहले नहीं थीं, बाद में भी नहीं रहेंगी, वस्त्र, धागा और सागर पहले भी थे और बाद में भी हैं. इसी तरह हम कह सकते हैं, मन सत्य है उसमें उठने वाले विचार, कल्पनाएँ, स्मृतियाँ मिथ्या हैं, जो पल भर पहले नहीं थीं और पल भर में ही खो जाने वाली हैं. विचार की उम्र कितनी अल्प होती है यह कोई कवि ही जानता है, एक क्षण पहले जो मन में जीवंत था, न लिखो तो ओस की बूंद की तरह ही खो जाता है. आनंदपूर्ण जीवन के लिए हमें सत्य को देखना है, इस बदलते रहने वाले संसार के पीछे छिपे सत्य परमात्मा को अपना अराध्य बनाना है. 


Thursday, July 20, 2023

ढाई आखर प्रेम के

गंगा सागर से भी जुड़ी है और हिमालय से भी।दोनों छोरों पर वह स्थिर है और मध्य  में गतिमान है। हिमालय में हिम के रूप में रूप बदल कर रहती है और सागर की गहराई में अदृश्य हो जाती है। सारी हलचल उसके कर्मक्षेत्र में है। गंगा की महानता उसके हिमालय से प्रवाहित होने के कारण भी है और सागर में मिलने के कारण भी। बहते समय वह अनेक छोटी जल धाराओं, नदियों को अपने में समा लेती है व कई पदार्थों के कारण दूषित होती है। इसी प्रकार आत्मा जन्म के पूर्व अव्यक्त है, मृत्यु के बाद भी उसका पता नहीं, केवल मध्य में जीवन दिखाई देता है। जैसे कोई जुगनू पल भर को चमके और बुझ जाये। इस छोटे से जीवन को यदि मानव प्रेम और ज्ञान से भर ले तो आनंद उसका नित्य सहचर बन सकता है। प्रेम से बढ़कर आनंद का कोई दूसरा स्रोत नहीं है। स्वयं का ज्ञान हुए बिना प्रेम संभव नहीं है। प्रेम ही सृष्टि के तत्त्वों को आपस में जोड़े हुए है। प्रेम ही एक व्यक्ति के ह्रदय को इतना विशाल बना देता है कि वह सारे विश्व को अपना मानने लगता है।  


Wednesday, July 19, 2023

जाने क्या है राज अनोखा

संत जन सदा ही कहते हैं, मानव देह दुर्लभ है. वाणी भी इसी देह में सम्भव है. अनुभव करने की शक्ति, स्वयं को जानने की शक्ति, जीने की शक्ति, सोचने की शक्ति इसी में मिलती है. मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार इसी देह में प्राप्त होते हैं. इसी में रहकर परम का अनुभव किया जा सकता है. किसी अन्य के लिए परम का अनुभव नहीं करना है, परम के लिए भी नहीं, स्वयं के लिए. स्वयं का सही का आकलन करने के लिए ही उसका अनुभव करना है. हम उसी असीम सत्ता का अंश हैं, उसकी शक्ति हममें भी है, उस का अनुभव हम कर सकते हैं, यह देह इसी काम के लिए मिली है. वाणी का वरदान जो हमें मिला है, अब वह वाणी किसी को दुःख न दे, पूर्णता को प्राप्त हो. बुद्धि जो सदा छोटे दायरे में सोचती रही है, अब उस परम को ही भजे. हम पल-पल मृत्यु की ओर बढ़ने को ही जीवन कहे चले जाते हैं. इतना सुंदर जीवन केवल मृत्यु की प्रतीक्षा ही तो नहीं हो सकता, अवश्य ही इसके पीछे कोई राज है, और जिसका पता केवल परम ही बता सकता है.  

Saturday, July 15, 2023

जब विवेक सधे जीवन में

हमारे जीवन की बागडोर हमने विवेक के हाथों में सौंपी है या मन के, इसकी खबर हमें तब मिलती है, जब जीवन में व्यर्थ के कष्ट आते हैं। दिनचर्या यदि सुव्यवस्थित नहीं रखी, अनुशासन का पालन नहीं किया, स्वाद के वशीभूत होकर अखाद्य पदार्थों का सेवन किया। रात्रि को देर तक जागरण किया। समय को व्यर्थ गँवाया। अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं किया। अपनी ख़ुशी के लिए संसार से उम्मीदें रखीं, जो पूरी नहीं हुईं तो उसका अफ़सोस किया। ये सब बातें विवेक के विपरीत हैं। हम अपने आप को भूले न रहें। देह, मन, बुद्धि आदि की सेवा में ही न लगे रहें, बल्कि ऐसा विवेक जगायें जो आत्मा के सानिध्य में ले जाये। विवेक का अर्थ है यह ज्ञान कि संसार उसी का नाम है जो निरंतर बदल रहा है। जो नित्य-अनित्य, सांत-अनंत में भेद करना सिखाये वही विवेक है।नित्य और अनंत के साथ एकत्व का अनुभव किए बिना कोई मुक्त नहीं हो सकता। 


Tuesday, July 11, 2023

सत्यं शिवं सुंदरं

जीवन का हर पक्ष सुंदर हो, साधक को सदा इस बात का बोध रहना चाहिए। सौंदर्य  की परख भी प्रेम, शांति तथा आनंद की भाँति मन की गहराई में जाकर मिलती है। शुद्ध चैतन्य को 'सत्यं शिवं सुंदरं' कहा गया है, जिससे जुड़कर साधक को सूक्ष्म व अरूप सौंदर्य की झलक मिलती है। जो अपने भीतर गया है वही प्रकृति के भीतर छिपे उस अनाम सौंदर्य से जुड़ सकता है। वायु का स्पर्श, आकाश की अनंतता, अग्नि की लपटों का आकर्षक रूप, बहाते हुए जल का कलकल नाद, उसमें उठती हुई तरंगें, धरती पर पर्वत, घाटियाँ, जंगल, आदि उसे सौंदर्य  की ख़ान के रूप में दिखायी देते हैं। इस असीम सुंदरता को संरक्षित व  सुरक्षित रखने की भावना सहज ही भीतर जगती है। उन्हें प्रदूषित करने का विचार भी उसके मन में  नहीं आ सकता। यदि नई पीढ़ी को बचपन से ही ध्यान सिखाया जाये तो वे इस गुण को सहज ही अपना लेंगे और अपने आस-पास एक सुंदर वातावरण का निर्माण करेंगे। 


Thursday, July 6, 2023

तोरा मन दर्पण कहलाये

मन उसी का नाम है जो सदा डांवाडोल रहता है, तभी मन को पंछी भी कहते हैं हिरन भी और वानर भी..आत्मा रूपी वृक्ष के आश्रय में  बैठकर टिकना यदि इसे आ जाये तो इसमें भी स्थिरता आने लगती है, वास्तव में वह स्थिरता होती आत्मा की है प्रतीत होती है मन में, जैसे सारी हलचल होती बाहर की है प्रतीत होती है मन में।मन तो दर्पण ही है जैसा उसके आस-पास होता है झलक जाता है. संगीत की लहरियों में डूबकर यह मस्त हो जाता है और किसी उपन्यास के भावुक दृश्य में भावुक।ऐसे मन का चाहे वह अपना हो या अन्यों का क्या रूठना और क्या मनाना।क्यों न हर सुबह मन को समझते हुए प्रवेश करें ताकि न किसी से मनमुटाव हो और न किसी का मन टूटे. आत्मा रूपी वृक्ष पर कुसुम की तरह खिला रहे सबका मन.


Tuesday, July 4, 2023

मर्म गुरु का जाना जिसने

जब किसी के जीवन में गुरु का पदार्पण होने वाला होता है, उसके पूर्व उसके मन में ईश्वर के प्रति प्रेम जागृत होता है। वह ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसे कोई पथ प्रदर्शक भेज दे। वह मार्ग ढूँढ रहा होता है पर उसे मार्ग दर्शक नहीं मिलता। तब अस्तित्त्व या परमेश्वर ही गुरु को भेजते हैं। गुरु, आत्मा और ईश्वर एक ही हैं। जब पुकार आत्मा की गहराई से उठती है, अंतर्यामी परमात्मा उसे सुन लेता है और उससे एक हुए गुरु तक वह पहुँच जाती है। दिल की गहराई से की गई कोई प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती, वह अवश्य फलीभूत होती है। हमारी प्यास यदि सच्ची है तो जल वहीं छलक जाता है।जीवन में जैसे उजाला हो जाता है, गुरु का अर्थ ही है जो अंधकार को दूर करे और प्रकाश फैलाए। कोई एक सदगुरु  करोड़ों लोगों के जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैला सकते हैं । वह आत्मा की गहराई में वैसे ही जुड़े हैं जैसे परमात्मा सर्वव्याप्त है। वह भी अंतर्यामी हैं, उनके मन व बुद्धि गंगाजल की तरह पवित्र और कैलास स्थित मानसरोवर के हंस के समान नीर-क्षीर विवेकी हैं। वह शुद्धता की कसौटी पर सच्चे मोती की तरह हैं, वह निसंग, निर्द्वंद, निरंजन हैं। वह निरन्तर समाधि का अनुभव करते हैं। वह उस तत्व से जुड़े हैं जो अविनाशी, अजर, अमर है, वह उस ज्ञान की पराकाष्ठा हैं जो हृदय को आनंद व प्रेम से भर देता है। 


Sunday, July 2, 2023

गुरु ज्ञान जीवन में आये

सद्गुरु कहते हैं जीवन गुरूतत्व से सदा ही घिरा है. गुरु ज्ञान का ही दूसरा नाम है. अपने जीवन पर प्रकाश डालकर हमें ज्ञान का सम्मान करना है, अर्थात सही-गलत का भेद जानकर जीवन में आने वाले दुखों से सीखकर ज्ञान को धारण करना है, ताकि पुनः वे दुःख न झेलने पड़ें. मन ही माया को रचता है और अपने बनाये हुए लेंस से दुनिया को देखता है. साधक वह है जो कोई आग्रह नहीं रखता न ही प्रदर्शन करता है. देने वाला दिए जा रहा है, झोली भरती ही जाती है. हमें वाणी का वरदान भी मिला है और मेधा भी बांटी है उसने. यदि उसे सेवा में लगायें जीवन तब सार्थक होता जाता है. भक्ति और कृतज्ञता के भाव पुष्प जब भीतर खिलते हैं, मन चन्द्रमा सा खिल जाता है, गुरु पूर्णिमा तब मनती है.