जनवरी २००७
बुद्ध
पुरुषों के वचनों को समझ लेने मात्र से हम बुद्ध नहीं हो पाते, जब तक हमारा स्वयं
का अनुभव न हो. उनके वचन सत्य सिद्ध हैं, वे उनके अनुभव हैं पर वे हमारे जीवन को
नहीं बदल सकते. वे केवल तथ्य की सूचना देते हैं, उनकी उदघोषणा में कोई भावावेश नहीं
है. वे हमें हमरी समझ के अनुसार चलने का आग्रह करते हैं. हम मात्र बुरा-बुरा कहकर विकार
को छोड़ने की कोशिश करते हैं पर सफल नहीं होते. यदि विकार को विकार की तरह देखते
हैं तभी बदलते हैं. हमारे दृष्टि में भी जब विकार अग्नि जैसा लगे, तभी हम उससे
बचते हैं. यदि संकट की घड़ी में ही केवल पुण्य का विचार करें और आराम के वक्त यदि
सहजता से विकार के वश में रहें तो जिससे हम लड़ते हैं वह प्रबल होता है. हम जिसका
दमन करते हैं वह एक न एक दिन बाहर आयेगा.
शोधपरक ,ज्ञानपरक ,श्रुति सा लेखन सुन्दर उपकारी।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteरक्षाबंधन की शुभकामनाएं
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति।
ReplyDeleteरक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सुन्दर चर्चा ...
ReplyDeleteसुंदर शुभ वचन.
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