जनवरी २००७
कृष्ण हमारा
सखा है और वह हमसे कहता है जैसे मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ वैसे ही तुम मुझसे करो
और मेरे नाते जगत से करो. जैसे मैं आनंद हूँ, वैसे ही तुम्हें भी जीना चाहिए. हमें
अपना परिक्षण नहीं करना है बल्कि वीक्षण करना है, जीवन जीना कोई गम्भीर कार्य नहीं
है, ईश्वर को पाना भी कोई गम्भीर कार्य नहीं है. हमें उस क्षण की प्रतीक्षा नहीं
करनी है जब हमें पूर्ण आनंद मिलेगा बल्कि इसी क्षण उसे पाना है. ईश्वर की समीक्षा
करनी है, वह जो सदा हमारे साथ है. हम उसके उत्तराधिकारी हैं, उसका सब कुछ हमारा है,
हम विशाल संपदा के अधिकारी हैं, यह सारा ब्रह्मांड हमारा घर है. न जाने कितने जन्मों
से हम घर से बाहर थे, अपने विरसे को हमने खो दिया था पर घर लौट कर आने पर वह हमारा
ऐसे स्वागत करता है जैसे हम उसके प्रियतम हों.
कान्हा बहुत ही नटखट है वह मेरे मन में रहता है । प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteइसी क्षण इश्वर को पाना है ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteशकुंतला जी व दिगम्बर जी, स्वागत व आभार !
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