Monday, August 18, 2014

ज्ञान की अग्नि जलाएं

जनवरी २००७ 
अनियंत्रित कामना के कारण ही क्रोध आता है. जो ज्ञानी हैं, उनका क्रोध पानी पर लकीर जैसा होता है, जो ज्ञान की साधना कर रहे हैं उनका क्रोध बालू पर लकीर जैसा, जो ज्ञान के इच्छुक हैं वे उतनी देर तक क्रोध में बने रहते हैं जितनी देर मिट्टी पर लकीर रहती है और जो अभी ज्ञान के पथ पर नहीं आये हैं, उनके हृदय में क्रोध उतनी देर तक बना रहता है जितनी देर लोहे पर लकीर. कामना विजातीय है, क्रोध भी विजातीय है, तभी हम उन्हें भीतर नहीं रख पाते, झट  प्रकट कर देते हैं. मनोजयी साधक प्रसन्नता को प्राप्त होता है, हर पल उसे आनन्द ही बना रहता है. साधक की कई बार परीक्षा भी होती है. उपलब्धि को यदि वह कृपा मानता है तो अभिमान से बचा रहता है. साधना का पहला सोपान है अंतःकरण की पवित्रता और अन्तिम सोपान है अंतःकरण की पवित्रता, यह साधना निरंतर चलती रहती है. मन जब निर्मल होता है तब ही उसमें समता आ पाती है, तब हर तरह की परिस्थिति में वह शांत रहता है. ज्ञान की अग्नि से कामना जल जाती है. 

3 comments:

  1. सुन्दर दर्शन मार्ग दर्शक विचार।

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  2. स्वागत व आभार वीरू भाई !

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  3. साधना का पहला सोपान है अंतःकरण की पवित्रता और अन्तिम सोपान है अंतःकरण की पवित्रता, यह साधना निरंतर चलती रहती है. मन जब निर्मल होता है तब ही उसमें समता आ पाती है, तब हर तरह की परिस्थिति में वह शांत रहता है.
    बहुत सुंदर बात ....!!

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