जनवरी २००७
श्रेष्ठ जनों से जब हम आदर ग्रहण करने लगते हैं तो वह हमारे पतन का
कारण है. मान पाने की इच्छा वह भी बड़े लोगों से अधम सुख है. जो अपने भविष्य को
सुंदर बनाना चाहता है उसे तो हर पल सजग रहना होगा. ईश्वर से उसे वही चाहना चाहिए
जो उसके लिए हितकारी हो. श्रद्धा से भरा मन, विश्वासी मन, समर्पित मन ही निर्भार,
निश्चिंत, निर्द्वन्द्व तथा निशंक हो सकता है. जब हम ऐसा जीवन जी सकते हैं तो
व्यर्थ की चिंता क्यों करें. हम कितने तो भाग्यशाली हैं, मानव जन्म मिला, भारत
भूमि में मिला तथा ज्ञान पाने का अवसर मिला. न जाने किस जन्म में कौन सा पुण्य
किया था जो इतना सब सहज ही प्राप्त हुआ है. इस जगत में पाने योग्य यदि कुछ है तो
श्रद्धा ही है. इसके सामने बड़े से बड़े सुख भी फीके पड़ जाते हैं. यह सुख भीतर से
मिलता है, हमें सहज बनाता है, सत्य से मिलाता है. इसे पाने के बाद ही कोई मीरा
गीतों को लुटाती है, सन्तजन प्रेम बरसाते हैं. यह जगत शरीर को रखने में सहायक है,
लेकिन सुख नहीं दे सकता, हाँ, सुख देने के का भ्रम अवश्य दे सकता है.
भावपूर्ण एवं सारगर्भित ...!!
ReplyDeleteसही है...
ReplyDeleteबिल्कुल सच कहा है ...आभार
ReplyDeleteभक्ति की पहली सीढ़ी है श्रद्धा
ReplyDeleteअनुपमा जी, वन्दना जी, कैलाश जी व वीरू भाई आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDelete