फरवरी २००७
“श्वास रुक जाएगी चलते चलते, शमा बुझ जाएगी जलते-जलते” भक्त जानता है, आज सेवा का
अवसर मिला है कल जाने मिले या न मिले और मिले भी तो हम रहें या न रहें यह भी नहीं
जानते. जब हम अपनी भावनाओं को कोमल और मृदु बना लेते हैं तो हम सहज रह सकते हैं.
जिसके भीतर धैर्य रूपी रत्न और शौर्य रूपी आभूषण है वह इस जगत को और सुंदर बना सकता
है. यह सारी सृष्टि उसी एक का रूप है, सभी प्राणी उसी के अंश हैं. हानि-लाभ की बात
तब रहती ही नहीं, सर्वोच्च लाभ तो भक्त पहले ही पा चुका होता है
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