जनवरी २००७
ध्यान
के बाद भीतर अद्भुत शांति छा जाती है, एक निस्तब्धता, सन्नाटा और गहरा मौन, जैसे
भीतर कोई ठंडक बसी हो. उस मौन में एक संगीत गूंजता है जो निरंतर सुनाई देता है. एक
आह्लाद का अनुभव होता है. एक नृत्य का जन्म हुआ हो जैसे और फिर कृतज्ञता के भाव
जगते हैं. सन्त ध्यान की बड़ी महिमा बताते हैं, वे कठिन विषय को भी सहज बना देते
हैं. उनकी बातें भीतर तक छू जाती हैं. सारे शास्त्र पुकार-पुकार कर यही कहते हैं,
ईश्वर हमारे भीतर है, वह अपार शांति, ज्ञान और आनन्द का स्रोत है. हम उससे पृथक
नहीं हैं. आत्मा व परमात्मा दोनों एक ही शै से बने हैं. जब मन सारी कामनाओं से
मुक्त हो जाता है तब आत्मा में ही स्थित होता है. वैसे भी जिसे आत्मा का अनुभव हो
जाये, उसे जगत से पाने लायक कुछ रह ही नहीं जाता, वह तो स्वयं दाता बन जाता है.
नटवर से बडा नर्तक भला कौन हो सकता है ?
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
सही कहा है शकुंतला जी आपने...
ReplyDeleteस्वयं दाता बन जाता है ..... सच कहा आपने
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