१३ जुलाई २०१७
जैसे प्रकृति में एक लय है, एक छंद है, एक नियमबद्धता है, एक अनुशासन है, वैसा ही
यदि जीवन में घटित होने लगे तो जीवन आनंदपूर्ण हो सकता है. समय आने पर कैसे अपने
आप ही पत्तियां झर जाती हैं, वृक्ष अपनी कुरूपता को सहज ही स्वीकार करता है और
उसमें भी एक सौन्दर्य का निर्माण हो जाता है. वृद्धावस्था को यदि सहजता से स्वीकार
लिया जाये तो उसमें भी एक सौन्दर्य है. अस्वस्थता में भी मन कैसे स्थिर हो जाता
है, अकड़ चली जाती है, बुखार में भी मुख पर एक चमक आ जाती है, इन्हें निमन्त्रण
नहीं देना है पर यदि किसी कारण वश देह स्वस्थ नहीं है, तो उसे पहले स्वीकार करके
फिर आवश्यक कदम उठाने हैं. मन यदि ‘हाँ’ की भाषा सीख गया है, तो उसकी ऊर्जा एक लय
में बंध जाती है, नकार की भाषा उसे अस्त-व्यस्त कर देती है.
सत्य वचन।
ReplyDeleteस्वागत व आभार अमृता जी !
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