२० जुलाई २०१७
परमात्मा को हटा दें तो इस जगत में बचता ही क्या है ? उसका ऐश्वर्य, उसकी विभूतियाँ और
उसका अनंत साम्राज्य ही चारों ओर फैला है. मानव चाहे तो उसका भागीदार बन सकता है
अन्यथा मात्र पहरेदार ही रह सकता है. अपना जान के उसे पुकारे अथवा तो उसे भुलाकर
सुख-दुःख के झूले में ही झूलता रहे. प्रेम को हटा दें तो भी कुछ नहीं बचता, अपनापन,
आत्मीयता और दुलार यदि जीवन में न हों तो मरुथल बन जाता है जीवन. मानव चाहे तो अपना
अहंकार खो कर उनमें डूब सकता है अन्यथा संबंधों में भी व्यापार ही चलता है.
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