१० जुलाई २०१७
कभी-कभी न चाहते हुए भी हमसे ऐसे कृत्य हो जाते हैं, जिन पर बाद में पश्चाताप
होता है. कभी मुख से ऐसे वचन निकल जाते हैं जिन्हें बोलने के बाद हमें लगता है,
इनकी जरूरत ही नहीं थी. इनका कारण हमारे भीतर के क्रोध आदि विकार हैं, जो जरा सी परिस्थिति
भी अनुकूल पाते ही सिर उठा लेते हैं अथवा तो जब उनके फल देने का वक्त होता है,
परिस्थिति पैदा कर लेते हैं. क्रोध, मान, मोह, माया आदि पूर्व कर्मों के फल हैं. भीतर
जो भी भाव उठते हैं वे संस्कारों के कारण होते हैं, संस्कार पूर्वकर्मों के अनुसार
होते हैं, हमें उनसे प्रभावित होने की आवश्यकता नहीं है. स्वयं का ज्ञान होने पर
ही यह पता चलता है. आत्मा के गुणों के आधार पर जो कर्म हम करते हैं, वे ही नये
संस्कार बनाते हैं, अन्यथा हम बार-बार पुराने ढंग से ही जिए चले जाते हैं. सम्मान कभी भी वर्चस्व से नहीं समानता से प्राप्त किया जाता
है, प्रेम और परोपकार से प्राप्त किया जाता है.
सुंदर अवलोकन ।
ReplyDeleteस्वागत व आभार अमृता जी !
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