Saturday, July 1, 2017

दो के पार ही वह मिलता है

२ जुलाई २०१७ 
बादल बरस रहे हैं, धरती हरी-भरी हो रही है. कुछ लोग इस वर्षा का आनंद उठा रहे हैं तो कितने ही लोग बाढ़ के कारण प्रभावित हुए हैं और अपने घरों से उन्हें सुरक्षित स्थान पर जाना पड़ा है. जीवन सदा ही विरोधाभासों से घिरा हुआ है. यहाँ दिन के साथ रात और सुख के साथ दुःख मिला हुआ है. हमारी नजर यदि द्वन्द्वों के पार एकरस अस्तित्त्व को देखने में सक्षम नहीं होती है तो हम जीवन को उसके वास्तविक रूप में कभी नहीं देख पाते. कभी हँसना तो कभी रोना यही तो जीवन नहीं हो सकता. सारी आपदाओं के पार भी एक ऐसी सत्ता है जो सदा निर्विकार है, जो हमारा मूल है. उससे मिलना ही जीवन से मिलना है.

4 comments:

  1. बड़े गूढ़ अर्थ होते हैं आपकी लेखनी में

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    1. स्वागत व आभार देवेन्द्र जी !

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  3. आनंदमई सशक्त अभिव्यक्ति मन की !!

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