५ जुलाई २०१७
साधना के पथ पर चलते समय इस बात का निरंतर ध्यान रखना होगा कि हम अपने मूल स्वभाव
की और जा रहे हैं या नहीं. ऐसा नहीं कि स्वयं को विशेष मानकर अथवा तो औरों को अपने
पथ में बाधा मानकर हम मन में विकार जगा लें. हमारी दिशा सही होनी चाहिए. अध्यात्म
के पथ पर जो धैर्यवान है, वह एक दिन मंजिल तक अवश्य पहुँचेगा. जब तक हम अपन शुद्ध
स्वरूप को नहीं जानते, परमात्मा के सच्चे स्वरूप को नहीं जान सकते. शांति, प्रेम,
आनंद आदि आत्मा का स्वभाव है, हमें इनका उपयोग करना है. ऐसा करने से सबसे पहले
उसका लाभ स्वयं को मिलता है तथा बाद में औरों को मिलता है.
सहमत ...
ReplyDeleteस्वागत व आभार दिगम्बर जी !
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