१६ जुलाई २०१७
‘जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि’ ये शब्द हम सभी ने न जाने कितनी बार सुने हैं. जब कोई
व्यक्ति हमारे दृष्टिकोण को समझ नहीं पाता, हम अपने को समझा लेते हैं कि उनके पास
वह दृष्टि ही नहीं है जो हमारी बात को समझ सकें. किन्तु इस बोध वाक्य का अर्थ बहुत
गहरा है. यह जगत हमें वैसा दिखाई देता है जैसा हमारा मन होता है. यदि मन उदास है,
नकारात्मक है तो जगत के प्रति शिकायतों से भर जायेगा. शिकायती मन और भी ज्यादा
उदासी से भर जायेगा, क्योंकि परिवर्तन के लिए ऊर्जा शक्ति चाहिए, नकारात्मक भाव
ऊर्जा का हरण शीघ्र कर लेते हैं. यदि प्राण शक्ति बढ़ी हुई है, मन प्रफ्फुलित है तो
जगत सुंदर दिखाई देगा. इस स्थिति में भी परिवर्तन नहीं लाया जा सकेगा, क्योंकि जब सब कुछ ठीक है तो कैसा परिवर्तन. मन
यदि समता में स्थित है, तब वह जैसा है वैसा ही दिखाई पड़ेगा. जहाँ आवश्यक है परिवर्तन
तब सहज ही होगा, जीवन एक ऊपर की ओर ले जाने वाली यात्रा बन जायेगा.
अनिर्वच ....
ReplyDeleteस्वागत व आभार अमृता जी !
ReplyDelete