२६ जुलाई २०१७
क्रोध और मोह से विहीन, राग-द्वेष से मुक्त जीवन ही असली जीवन है. यदि हम इन
विकारों से मुक्त नहीं हो पाते तो इसका कारण बाहर नहीं है. हमारी असफलता का कारण
भीतर ही है. सुख की कामना ही मोह है. मोह के कारण ही हमें भय सताता है और अज्ञान
के कारण ही इस सत्य को हम देख नहीं पाते. सुख के जिन साधनों के पीछे जाकर पहले-पहल
हम मुग्ध होते हैं बाद में वही दुःख का कारण बन जाते हैं. हमारे सुख में जो बाधक
हो उसके प्रति द्वेष करते हैं पर नहीं जानते कि शुद्ध अहिंसा जब किसी हृदय में घटती
है उसके लिए कोई पराया नहीं रह जाता. जग के साथ वह एक हो जाता है और उसके अंतर्मन
में करुणा जल अनायास ही बहने लगता है.
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