Tuesday, July 11, 2017

प्रतिपल बदल रहा है जग यह

१२ जुलाई २०१७ 
हमारे दुखों का कारण हमारे ही भीतर है, इसका ज्ञान होते ही हम सबल हो जाते हैं. जिस वस्तु का निर्माण हमने किया है उसे नष्ट करने की क्षमता भी तो हमारे ही पास है. यदि जगत हमारे दुखों का कारण हो तब तो हम असहाय हैं, क्योंकि जगत को बदलने की क्षमता हमारे पास है ही नहीं, जगत अपनी राह चलेगा ही. यदि बाहरी कारण हमारे अंतर्मन की दशा को प्रभावित करते हैं तब तो हम कभी भी प्रसन्न नहीं रह सकते क्योंकि बाहर तो सब कुछ प्रतिपल बदल रहा है. मौसम ही अनुकूल-प्रतिकूल होते रहते हैं. व्यक्ति बदल जाते हैं. यहाँ तक कि हमारा खुद का मन भी सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग भावों में रहता है. बस एक हम ही हैं जो कभी नहीं बदलते, जो अनंत काल से जैसे थे अनंत काल तक वैसे ही रहेंगे. पर हम तो अपने उस न बदलने वाले स्वयं से कभी मिले ही नहीं, इसलिए कभी ख़ुशी कभी गम के गीत ही गाते रहे. 

No comments:

Post a Comment