२८ जुलाई २०१७
साधक के लिए सबसे जरूरी बात है कि वह प्रामाणिक बने. उसे अपने मन की गहरी आकांक्षा
को जानना होगा. अध्यात्म के मार्ग पर चलकर
वह क्या पाना चाहता है. परमात्मा और उसके मध्य यदि कोई भेद अब भी शेष है तो इसका
कारण परमात्मा नहीं साधक के मन का दुराव है. यदि किसी क्षण में वह अपने मन को पूरी
सच्चाई से परम के सामने खोल कर रख देता है, कोई छिपी हुई कामना अनदेखी नहीं रहती
जिसे वह परमात्मा के द्वारा पूरा करना चाहता है, उसी क्षण मिलन घटता है. स्वयं को
जानने के लिए ही योग साधना है. आसनों के द्वारा देह शुद्धि तथा ध्यान के द्वारा मन
की स्थिरता प्राप्त करके ही हम स्वयं को जान सकते हैं. इससे पहले की गई भक्ति सकाम
भक्ति होती है. जब तक हम परमात्मा से मांगते हैं पर परमात्मा को नहीं मांगते तब तक
मुक्ति सम्भव नहीं.
बहुत सुन्दर और सटीक चिंतन...
ReplyDeleteस्वागत व आभार कैलाश जी !
ReplyDelete