१९ जुलाई २०१७
संत जन सदा ही कहते हैं, मानव देह दुर्लभ है. वाणी भी इसी देह में सम्भव है.
अनुभव करने की शक्ति, स्वयं को जानने की शक्ति, जीने की शक्ति, सोचने की शक्ति इसी
में मिलती है. मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार इसी देह में प्राप्त होते हैं. इसी में
रहकर परम का अनुभव किया जा सकता है. किसी अन्य के लिए परम का अनुभव नहीं करना है,
परम के लिए भी नहीं, स्वयं के लिए. स्वयं का सही का आकलन करने के लिए ही उसका
अनुभव करना है. हम उसी असीम सत्ता का अंश हैं, उसकी शक्ति हममें भी है, उस का
अनुभव हम कर सकते हैं, यह देह इसी काम के लिए मिली है. वाणी का वरदान जो हमें मिला
है, अब वह वाणी किसी को दुःख न दे, पूर्णता को प्राप्त हो. बुद्धि जो सदा छोटे
दायरे में सोचती रही है, अब उस परम को ही भजे. हम पल-पल मृत्यु की ओर बढ़ने को ही
जीवन कहे चले जाते हैं. इतना सुंदर जीवन केवल मृत्यु की प्रतीक्षा ही तो नहीं हो
सकता, अवश्य ही इसके पीछे कोई राज है, और जिसका पता केवल परम ही बता सकता है.
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