Thursday, July 11, 2013

सत्य की आराधना हो !

जीवन 
अक्तूबर २००४ 
जीवन एक अनमोल उपहार है जो ईश्वर ने हमें प्रदत्त किया है, हमारी देह, मन व बुद्धि एक महान उद्देश्य की  प्राप्ति के लिए हमें मिले हैं. जब तक हम सामान्य में ही उलझे रहते हैं अर्थात बुद्धि का प्रयोग केवल देह को बनाये रखने और मन को खुश रखने में ही करते हैं, अपने जीवन का सही मुल्यांकन नहीं कर  पाते. सुख-दुःख के झूले में झूलते-झूलते ही जीवन समाप्त हो जाता है, पर जैसे ही इन साधनों का उपयोग उस महान सत्य की उपलब्धि में लगा देने की इच्छा मात्र ही करते हैं, भीतर से प्रेरणा मिलती है. गुरु का हमारे जीवन में पदार्पण होता है, प्रकृति हमारी सहायक हो जाती है, मन एक अनोखे आनन्द से भर जाता है. सत्य के प्रति निष्ठा ही हमें शांति से भर देती है. सत्य से प्रेम होना ही सद्गुरु के अनुसार साधना का चरम लक्ष्य है, क्योंकि जब उस एक के प्रति हमारे अंतर में प्रेम भर जाता है तो वही प्रेम सृष्टि के कण-कण में नजर आने लगता है, किसी से कोई विरोध नहीं रह जाता, तब सभी के भीतर उस परम सत्ता के दर्शन होते हैं, वह एक ही अनेक होकर प्रकट हो रहा है ऐसा ज्ञान सत्य प्रतीत होता है. भीतर जाकर ही पता चलता है, हमारा मन ही सुख-दुःख का कारण है, मन ही राग-द्वेष जगाता है तथा कर्म संस्कार एकत्र करता है, साक्षी भाव में रहना आ जाये तो मन अमनी भाव में आने लगता है.

3 comments:

  1. सत्य से प्रेम होना ही सद्गुरु के अनुसार साधना का चरम लक्ष्य है,

    RECENT POST ....: नीयत बदल गई.

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है .प्रेम आप्लावित स्व:दर्शन (आत्म दर्शन )से सर्व के प्रति प्रेम तक .

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  3. धीरेन्द्र जी व वीरू भाई, स्वागत व आभार !

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