Wednesday, July 3, 2013

गोपी मनहर सुंदर हरिओम

अक्तूबर २००४ 
गोपियों से हमें बहुत कुछ सीखना है, वे विशाल हृदय को रखने वाली हैं, उनके विरह की अग्नि में भीतर के विकार जल सकते हैं. उल्लास से गहन शांति की ओर उनकी प्रेम यात्रा बढ़ती ही जाती है. जब कोई प्रेम में होता है तो भीतर पूर्णता का अहसास रहता है, तब कोई अभाव नहीं सताता. अभाव तभी खलते हैं जब हम भीतर खाली हो जाते है प्रेम व ज्ञान से. जब लोभ, दम्भ, असत्य हमारी आँखों पर पर्दा डाल देते हैं, और यह भी ईश्वर की कृपा ही है, हमें चेताने के लिए वे कोई न कोई व्यवस्था कर देते हैं कि हम उसे पुकार उठते हैं, हमारे पास एकमात्र पूंजी है आत्मा की शक्ति, उसे अनुभव करने के लिए मन को सुपात्र बनाना होगा.


8 comments:

  1. जी, सही है
    बहुत सुंदर भाव


    जरूर देखिए TV स्टेशन पर " जल समाधि दे दो ऐसे मुख्यमंत्री को "
    http://tvstationlive.blogspot.in/

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  2. सच कहा है आपने ...
    राग मय ...

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  3. सुन्दर रचना। बहुत सुंदर भाव

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  4. कितनी सच्ची बात लिखी है ....अनुभूति तो हमारे चारों ओर है ....बस हमे सुपात्र होना है ....!!
    बहुत सुंदर ....!!

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  5. शुक्रिया अनीता जी उत्साह बढाने का .ॐ शान्ति .चार दिनी सेमीनार में ४ -७ जुलाई ,२ ० १ ३ ,अल्बानी (न्युयोर्क )में हूँ .ॐ शान्ति .
    अनमोल वचन हैं ये अनुकरणीय भी हैं .ॐ शान्ति .

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    1. वीरू भाई, सेमिनार के लिए शुभकामना व बधाई ! न्यूयार्क की यात्रा व सेमिनार के बारे में भी एक पोस्ट लिखें..

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  6. महेंद्र जी, दिगम्बर जी, अशोक जी व अनुपमा जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  7. हमारे पास एकमात्र पूंजी है आत्मा की शक्ति, उसे अनुभव करने के लिए मन को सुपात्र बनाना होगा....
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