करां सजदा ते सिर न उठावां, के दिल विच रब वसदा
किवें
सूरत तो नजरां उठावां, के दिल विच रब दिसदा
जब
भी यह सुंदर भजन सुनते हैं तो मन प्राण आलोड़ित हो जाते हैं. ईश्वर हमारे भीतर है,
फिर भी हम संदेह का शिकार होते हैं, हमारे पुण्य कर्म जब क्षीण होते हैं, तब मन
शंकाओं से घिर जाता है. सत्संग हमें पुनः-पुनः अपनी स्मृति कराता है. प्रमाद नीचे
ले जाता है, अज्ञान की निद्रा मोह में डाल देती है, पर कृपा हमें उबार लेती है
क्योंकि मन में होने वाली कचोट हमें शांत नहीं बैठने देती. एक बार जो उस रास्ते चल
पड़े वह उससे विमुख कब तक रह सकता है. परमात्मा हमारे कोटि-कोटि अपराधों को क्षमा
कर देते हैं और पुनः अपनी शरण में ले लेते हैं. अपना भूला हुआ पथ हम फिर से पा
लेते हैं.
परमात्मा हमारे कोटि-कोटि अपराधों को क्षमा कर देते हैं और पुनः अपनी शरण में ले लेते हैं....
ReplyDeleteहाँ बनाया तो परमात्मा ने ईश्वर को अपने (बिंदु वत ज्योति स्वरूप )में ही है उसकी याद हमारे हृदय में हो तो वह हमारे पास ही हो। परन्तु वह तो अ -शरीरी है। हमारे दिल में उसकी याद तो समाये वह कैसे समाये ?
ReplyDeleteतुम तो यहीं कहीं बाबा ,मेरे आसपास हो ,
आते नजर नहीं पर मेरे साथ साथ हो।
सत्य वचन
Deleteराहुल जी व वीरू भाई स्वागत व आभार !
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