Tuesday, July 23, 2013

बन जायें मुरली कान्हा की

नवम्बर २००४ 
अध्यात्म के क्षेत्र में हम निरपेक्ष हैं, किन्तु समाज में रहते हुए हमें कितनों की सहायता अपने जीवन में लेनी पडती है. वहीं हमारी साधना की परीक्षा होती है.. जिसने ईश्वर का मार्ग अपनाया है, उसे अपनी ऊर्जा समाज के लिए निस्वार्थ भाव से लगानी होगी, अन्यथा वह उसका करेगा भी क्या. हमारे सन्त जो स्वयं पूर्णकाम हैं लोगों के जीवन में प्रकाश फ़ैलाने का कार्य करते हैं. साधक से यदि कोई ऐसा काम न हो जिससे किसी को चोट पहुंचे तो उसके कर्म भी शुद्ध होते जायेंगे. ईश्वर उसके माध्यम से स्वयं को प्रकट करेंगे. एक ही चेतना भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकट हो रही है, हमारे भीतर भी वह विद्यमान है, प्रकट होने की राह देख रही है. हमें उसे मार्ग देना है, मिथ्या अभिमान तथा अज्ञान की पर्त को हटाकर उसे जगाना है. आत्मशक्ति का जागरण ही आध्यात्मिकता है.

2 comments:

  1. मिथ्या अभिमान तथा अज्ञान की पर्त को हटाकर उसे जगाना है. आत्मशक्ति का जागरण ही आध्यात्मिकता है....
    सुन्दर भाव ....

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  2. राहुल जी, स्वागत व आभार !

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