अक्तूबर २००४
मृत्यु, नींद, ध्यान और प्रेम सभी में समवाय सम्बन्ध है, ध्यान
में हमें काल का भान नहीं रहता, परिवेश का ध्यान नहीं रहता. हमारा छोटा मन जैसे
लुप्त हो जाता है, चेतना विस्तार पा जाती है, वह तो पहले से ही विस्तृत है, पर
हमारा क्षुद्र अहंकार उसे उसी प्रकार ढके रहता है जैसे सूर्य को बादल का छोटा सा
टुकड़ा. सूर्य तो सदा चमकता रहता है चाहे बादल कितने भी घने हों, उसी तरह हमारी
चेतना निरंतर एकरस रहती है चाहे तन, मन में कितने ही तूफान आते-जाते रहें. हमें
उसी चेतना में स्थिर रहना है. जीते जी मृत्यु का अनुभव ध्यान, नींद और प्रेम तीनों
में होता है, जब हमें अपने होने का तो भान रहता है पर हम कौन हैं, क्या है, कहाँ
हैं यह भान नहीं रहता. मृत्यु का क्षण भी ऐसा ही होगा. मृत्यु के बाद भी हम तो
होंगे, पर कोई आकार नहीं होगा.
मृत्यु के बाद भी हम तो होंगे,पर कोई आकार नहीं होगा.,
ReplyDeleteRECENT POST : अभी भी आशा है,
चाहे बादल कितने भी घने हों, उसी तरह हमारी चेतना निरंतर एकरस रहती है चाहे तन, मन में कितने ही तूफान आते-जाते रहें. हमें उसी चेतना में स्थिर रहना है....
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दिव्य निर्मल प्रवाह....
बढिया, बहुत सुंदर
ReplyDeleteमेरी कोशिश होती है कि टीवी की दुनिया की असल तस्वीर आपके सामने रहे। मेरे ब्लाग TV स्टेशन पर जरूर पढिए।
MEDIA : अब तो हद हो गई !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/media.html#comment-form