अक्तूबर २००४
हमें मानव योनि मिली है यह प्रभु की कृपा है. हमारे जीवन का लक्ष्य
मानव देह पाकर स्वयं ही निर्धारित हो जाता है, वह है अनंत का अनुभव. हमारे भीतर
आत्मा का सूरज जगमगा रहा है पर उसका प्रकाश हमारे कर्मों के जाल से आच्छादित है. वह
प्रकट होना चाहता है, पर प्रारब्ध कर्म, संचित कर्म तथा क्रियमाण कर्मों की लम्बी
श्रंखला है जो उसे ढके हुए है, यदि हम नियमित ध्यान करें तो क्रियमाण कर्म घटते
चले जायेंगे, सद्गुरु या परमात्मा की शरण में जाते ही वह हमारे संचित कर्मों को
काट देते हैं. रह गये प्रारब्ध कर्म, उनका फल तो हमें भोगना ही पड़ेगा पर जीने की
कला यदि आती हो तो प्रारब्ध कर्म हमें बांध नहीं सकते. आते-जाते सुखों-दुखों को
देखते हुए हम मस्त रहते हैं. हम साक्षी भाव में टिकने लगते हैं तो अनंत स्वयं को
छुपा नहीं सकता. हमारे जीवन का उद्देश्य यदि हर पल सामने रहेगा तो एक क्षण भी
व्यर्थ नहीं जायेगा, सारा उद्यम उस एक की प्राप्ति के लिए होगा तो शेष सब अपने आप
व्यवस्थित होता चला जायेगा, आनन्द, शांति व प्रेम के फूल खिलने लगेंगे. अनंत अपने
पूरे वैभव के साथ हमारे ही भीतर है, और वह प्रकट होना चाहता है, वहाँ कोई विरोध
नहीं, कोई द्वैत नहीं, कोई अभाव नहीं.
सुंदर अद्वैत भाव .....बहुत सुंदर ....!!
ReplyDeleteआपकी रचना कल बुधवार [03-07-2013] को
ReplyDeleteब्लॉग प्रसारण पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
सादर
सरिता भाटिया
सुंदर, बहुत सुंदर
ReplyDeleteउत्तराखंड त्रासदी : TVस्टेशन ब्लाग पर जरूर पढ़िए " जल समाधि दो ऐसे मुख्यमंत्री को"
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html?showComment=1372748900818#c4686152787921745134
हम साक्षी भाव में टिकने लगते हैं तो अनंत स्वयं को छुपा नहीं सकता. हमारे जीवन का उद्देश्य यदि हर पल सामने रहेगा तो एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जायेगा....
ReplyDeleteउम्दा...
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteखुबसूरत रचना ,बहुत सुन्दर भाव भरे है रचना में,आभार !
ReplyDeleteसुन्दर और शानदार।
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