पदार्थ से अपदार्थ की ओर तथा पर से परम की
ओर हमें जाना है . परम ही ब्रह्म है, वही शिव है. सबसे बड़ी बाधा भीतर की होती है,
हमारे पूर्वाग्रह, मान्यताएं, रुचियाँ तथा अपेक्षाएं, नकारात्मक भावनाएं और हमारा
स्वार्थ. हम कुछ भी नहीं हैं जिस क्षण यह भाव दृढ हो जाता है, कृपा का अनुभव तत्क्षण
होने लगता है. जब कुछ हैं ही नहीं तो कुछ चाहिए भी नहीं, कोई आग्रह भी नहीं. हम इस
विशाल सृष्टि के नियंता का अंश हैं, बूंद सागर से अलग तो नहीं, जब हम कुछ नहीं हैं
तो इसका अर्थ हुआ हम वही हैं, जब वही हैं तो सब कुछ हमारा पहले से ही है. केवल हम
ही नहीं सारे प्राणियों की यही सच्चाई है, तो हममें भेद कहाँ रहा, भेद गया तो सारे
द्वंद्व भी मिट गये और सारा का सारा विषाद छू मंतर हो गया. फिर एकमात्र जो शेष रहा
वह वही है, अनंत सुख का स्रोत, ज्ञान का स्रोत. दृश्य से हमें द्रष्टा में लौट आना
है, द्रष्टा को देखने वाले बनते ही सहजता का अनुभव होता है. हमारा जीवन जब सहज
होता है सारा जगत अपना घर लगता है, सारे प्राणी अपने लगते हैं, मन तब सारे
द्वन्द्वों से परे होता है. अपने भीतर जिसे जाना आ गया वह बाहर कहीं भी जा सकता
है, वह निर्भय हो जाता है.
सत्य है।
ReplyDeleteभीतर जाकर ही वह मिलता
ReplyDeleteपदार्थ से अपदार्थ की ओर, अपर से पर की ओर तथा पर से परम की ओर हमें जाना है . परम ही ब्रह्म है, वही शिव है.
अपर (अपरा ?)से पर की तरफ का क्या अर्थ है हमें नहीं बूझा कृपया मदद करें। अपर से पर की यात्रा क्या है ?बतलाएं ज़रूर बतलाएं।
ब्रह्म ही शिव है तो फिर ये ब्रह्म तत्व क्या है साधू सन्यासी कई गीता के भाष्यकार इसकी बड़ी चर्चा करते हैं।
ReplyDeleteकेवल हम ही नहीं सारे प्राणियों की यही सच्चाई है, तो हममें भेद कहाँ रहा, भेद गया तो सारे द्वंद्व भी मिट गये और सारा का सारा विषाद छू मंतर हो गया. फिर एकमात्र जो शेष रहा वह वही है, अनंत सुख का स्रोत, ज्ञान का स्रोत...
ReplyDeleteहर शब्द ज्ञान की निर्मल धारा.....कलम कायम रहे...अनवरत..
देवेन्द्र जी व राहुल जी, स्वागत व आभार !
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