अनंत-अनंत सुखों की राशि परमात्मा हमें सहज ही प्राप्त है, पर हम
भीतर की ओर मुड़ना नहीं जानते. हमारी दृष्टि जब अन्तर्मुखी होती है, तब परमात्मा
अपनी विभिन्न शक्तियों के रूप में प्रकट होने लगता है, क्षण भर को जगत का लोप हो
जाता है, शब्द तब साक्षात् सरस्वती के रूप में भीतर प्रकट होते हैं. ऋषियों ने
हजारों वर्ष पूर्व ऐसे ही मन्त्रों का दर्शन किया था, आज भी अनेक सन्त-महात्मा तथा
सद्गुरु उस अनंत परमात्मा की झलक अपने भीतर पा लेते हैं, फिर उस आनन्द को बाहर
बिखेरते हैं. उस आनन्द में कैसी मोहिनी है कि साधक भी उसकी ओर खिंचे चले जाते हैं,
ऐसा लगता है जैसे भीतर कुछ घट रहा हो, कोई सोता जैसे फूट रहा है, एक अनोखी शांति
भीतर छा रही है, जैसे पहले कभी नहीं छाई. संसार की किसी भी वस्तु में ऐसी शक्ति
नहीं जो ऐसी अद्भुत शांति को भीतर भर दे, परमात्मा की आह्लादिनी शक्ति ही ऐसा कर
सकती है. मन तब भीतर की ओर मुड़ना चाहता है, बार-बार उस स्वाद को लेना चाहता है, पर
मन की ही दीवार उसमें बाधा बन जाती है, तब पीड़ा का अनुभव होता है, पीड़ा भी ऐसी कि
दिल चीर कर रख दे, पीड़ित मन जब अपने ही आंसुओं से धुलता है तो पल भर के लिए दीवार
ढह जाती है और झलक मिलती है, वह कह उठता है, काश ! तू सदा हमारी स्मृति में रहे.
आज भी अनेक सन्त-महात्मा तथा सद्गुरु उस अनंत परमात्मा की झलक अपने भीतर पा लेते हैं, फिर उस आनन्द को बाहर बिखेरते हैं. उस आनन्द में कैसी मोहिनी है कि साधक भी उसकी ओर खिंचे चले जाते हैं, ऐसा लगता है जैसे भीतर कुछ घट रहा हो, कोई सोता जैसे फूट रहा है.....
ReplyDelete---------------------
VERY NICE