Thursday, July 4, 2013

गीत जागरण के गाने हैं

अक्तूबर २००४ 
इस जगत में कभी-कभी ऐसी परिस्थितियों का सामना हमें करना पड़ जाता है, जिसकी कभी कल्पना भी हमने नहीं की होती, जीवन में कभी-कभी अप्रत्याशित भी घट जाता है, हम बेखबर से राह पर चले जा रहे हैं कि अचानक एक गहरी खाई सम्मुख आ जाती है. यह बेखबरी, यह बेहोशी ही साधना की सबसे बड़ी शत्रु है. एक साधक को पल-पल सचेत रहना है, आने वाले दुखों को भी जो टाल दे वही साधना है. वचन, कर्म तथा विचारों के प्रति निरंतर सजग रहकर ही साधक सदा किसी भी परिस्थिति का सामना समता से कर सकता है, वरना संसार कब उसे घेर लेता है, तृष्णा कब उसे लील जाती है, पता ही नहीं चलता. असावधानी वश कोई ऐसा वचन मुख से निकल जाता है जिस पर बाद में सिवा पछताने के कुछ हाथ नहीं लगता. सूक्ष्म अहंकार, लोभ, तथा इच्छाएं हम पर तभी आक्रमण करती हैं जब हम असावधान होकर जीते हैं. मुक्ति के गीत गाता हमारा मन तब स्वयं को पिंजड़े में बंद पंछी की तरह फड़फड़ाता नजर आता है, पानी बिना मछली की भांति छटपटाता नजर आता है. बंधन उसे पसंद नहीं, जो एक बार मुक्ति का स्वाद चख चुका हो बंधन उसे कैसे भायेगा. जिसने खुले आकाश की उड़न भरी हो वह बंधन में आंसू ही बहा सकता है. मुक्त मन ही भक्ति का अधिकारी है और मुक्त मन ही कृपा का भी अधिकारी है. जब जब हम अचेत होते हैं तब-तब ही बंधन में पड़ जाते हैं, हम भुलावे में न रहें यही प्रार्थना हमें हर क्षण करनी है.  


4 comments:

  1. जब जब हम अचेत होते हैं तब-तब ही बंधन में पड़ जाते हैं, हम भुलावे में न रहें यही प्रार्थना हमें हर क्षण करनी है......

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,अभार।

    ReplyDelete
  3. सूक्ष्म अहंकार, लोभ, तथा इच्छाएं हम पर तभी आक्रमण करती हैं जब हम असावधान होकर जीते हैं.

    भावों का सूक्ष्म चित्रण

    ReplyDelete
  4. राहुल जी, राजेन्द्र जी तथा रमाकांत जी आप सभी का स्वागत व आभार !

    ReplyDelete