Tuesday, February 11, 2014

सेवा भी साधना है

अगस्त २००५ 
सेवा स्नेहवश होती है, वहाँ स्वयं के लिए कुछ नहीं चाहिए, चाहिये तो केवल सेव्य की प्रसन्नता, सेवक यदि अपना सुख चाहे, अपनी रूचि को सेव्य पर लादे तो वह अपनी ही सेवा कर रहा है. हनुमान सेवक हैं, उनके प्रेम की धारा सदा आराध्य की ओर बहती है. वह राम की सेवा के अवसर खोजते हैं. हम लोग अपनी सुविधा देखकर सेवा करते हैं, तभी उसका फल नहीं मिलता. सच्ची सेवा करने से अन्तःकर्ण की शुद्ध होती है, अहंकार गलता है. सेवा हमें प्रभु के पास ले जा सकती है. 

6 comments:

  1. सच में निस्वार्थ सेवा ही हमें प्रभु के नज़दीक लेजाती है...बहुत सार्थक चिंतन..आभार

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  2. बहुत सार्थक बात कही अनीता जी आज ....!!

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  3. बहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट प्रस्तुति, धन्यबाद .

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  4. निस्वार्थ भाव से सेवा करना भी साधना है ..!
    RECENT POST -: पिता

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  5. "परहित सरिस धरम नहिं भाई --।"
    तुलसीदास

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  6. कैलाश जी, अनुपमा जी, राजेन्द्र जी, धीरेन्द्र जी तथा शकुंतला जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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