जनवरी २००६
मन यदि एक बार ईश्वर को
अर्पित कर दिया तो फिर लाख कोशिश करने पर भी वापस नहीं मिलता, बार-बार उसी की ओर
लौटना चाहता है. मन आखिर क्या है क्या ? मन एक रास्ता है संसार से ईश्वर की ओर
जाने का रास्ता ! यह एक पुल है बाहर से भीतर जाने का अथवा भीतर से बाहर आने का. मन
सत्पथ है, प्रेम पथ है जो प्रभु के पास हमें ले जाता है ! मन यदि आत्मा से जुड़ा
रहेगा तभी स्वस्थ रहेगा. मन जब आत्मा में विश्राम पाकर लौटता है तो सबल हो जाता
है. आत्मा उसका घर है और संसार उसका कर्मक्षेत्र है. बुद्धि भी तभी प्रज्ञावान
होती है, जब आत्मा से पोषित होती है.
मन सत्पथ है, प्रेम पथ है जो प्रभु के पास हमें ले जाता है ! मन यदि आत्मा से जुड़ा रहेगा तभी स्वस्थ रहेगा......
ReplyDeleteस्वागत व आभार, राहुल जी
Delete" उर में माखन-चोर गडे ।
ReplyDeleteअब कैसेहुँ निकसत नाहीं ऊधो तिरछे व्हैं जु अडे ।"
सूरदास
आभार शकुंतला जी सूरदास की कविता का रसपान करने के लिए..
Deleteमन उसका ही है, वह जिधर चाहे मोड दे ...
ReplyDelete