मार्च २००६
जीवन
में कोई एक मंत्र हो, एक मित्र हो और एक सूत्र हो जो हमारी रक्षा करे. मंत्र, मित्र
तथा सूत्र तीनों एक भी हो सकते हैं, एक ही सद्गुरु में समा सकते हैं जो हमारी
रक्षा करता है. आत्मा भी एक मंत्र है, मित्र भी वह है, और सूत्र तो वह है ही. जो
आत्मा में वास करता है सदा उसकी रक्षा होती है. ईश्वर भी हमारा मित्र है, उसका नाम
मंत्र है, उसका ‘ध्यान’ ही सूत्र है. हमारा नेत्र भी मंत्र, मित्र तथा सूत्र हो
सकता है. हमारी दृष्टि जितनी पवित्र होगी उतनी ही हमारी रक्षा होती रहेगी.
दृष्टिकोण सकारात्मक हो, भाव उच्च हों तो हमारा अनिष्ट कैसे हो सकता है. हमारी
दृष्टि जब धूमिल हो जाती है, चीजों को हम उनके सही रूप में नहीं देखते तभी हमारा
अंतःकरण मलिन होता है. मूल रूप में सब पवित्र है. हमारा जीवन आनंद के लिए है,
प्रभु को प्रेम करते करते त्याग करते हुए ग्रहण करने के लिए है न कि संसार के पीछे
भागकर दुखी होके जीने के लिए.
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (16.05.2014) को "मित्र वही जो बने सहायक
ReplyDelete" (चर्चा अंक-1614)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ईश्वर भी हमारा मित्र है, उसका नाम मंत्र है, उसका ‘ध्यान’ ही सूत्र है......
ReplyDeleteस्वागत व आभार राहुल जी
ReplyDeleteमंत्र, मित्र तथा सूत्र तीनों में वह सर्वव्यापी शक्तिमान छुप कर बैठा रहता है जो हमारी रक्षा करता रहता है
ReplyDeleteईश्वर से बढ कर कौन हो मित्र।
ReplyDeleteजीवन में कोई एक मंत्र हो,एक मि्त्र हो,एक सूत्र हो----
ReplyDeleteदृष्टिकोंण सकारात्मक हो----अनिष्ट कैसे हो सकता है.
संपूर्ण जीवन का संपूर्ण वचन.
साभार-धन्यवाद,अनीता जी,थोडे में,संपूर्ण की अभिव्यक्ति.
॥सकारात्मक दृष्टिकोण बहुत सारी व्याधियों से बचाता है ...!!वाकई ...!!ज्ञानवर्धक आलेख अनीता जी ...!!
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