Thursday, May 8, 2014

एक उसी के नाते सब है

फरवरी २००६ 
जो देहातीत है, शब्दातीत है, गुणातीत है, वह परमात्मा हमारे अनुराग का पात्र हो. यह सभी का अनुभव है कि संसार के प्रति राग दुःख का जनक है था दुःख से मुक्ति की आकांक्षा परमात्मा की ओर जाने की सीढ़ी है. परमात्मा की ओर की जाने वाले यात्रा जीवन को एक उत्सव में बदल देती है और तब संसार भी अपना बन जाता है. 

2 comments:

  1. परमात्मा की ओर की जाने वाले यात्रा जीवन को एक उत्सव में बदल देती है और तब संसार भी अपना बन जाता है......

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  2. स्वागत व आभार राहुल जी !

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